संकल्प सवेरा
चाहा था उसको मैंने फूल की तरह
वो उड़ा गया हवा में धूल की तरह
देखा था उसको मैंने खाबो में हयात
रखा था जिंदगी में उसूल की तरह
चाहत का मेरी उसपे गहरा था असर
उतार गया एक दिन जूनून की तरह
पहले तो उसको मेरे लगे थे मीठे बोल
चुभने लगे फिर बाद में शूल की तरह
यादों का उसकी मुझपे कर्ज है हयात
चुका न पाई अब तक मूल की तरह
चाहत में उसको मैंने बना दिया अनमोल
वो छोड़ गया मुझे फिजूल की तरह
याद अब भी करती हूं उसको मै बहुत
वो भूल गया मुझे किसी भूल की तरह
खुशनुमा हयात (एडवोकेट/ कवियत्री) बुलंदशहर उत्तर प्रदेश भारत












