मनुष्य के कर्मों से ही मिलता है सुख-दुख : प्रेम भूषण जी महाराज
कलयुग में अकाल मृत्यु की बढ़ रही घटनाएं
मनुष्य को नचाती है भगवान की माया प्रकृति
जौनपुर,संकल्प सवेरा। बीआरपी इण्टर कॉलेज के मैदान में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं समाजसेवी ज्ञान प्रकाश सिंह के पावन संकल्प से प्रायोजित सात दिवसीय रामकथा के तीसरे दिन कथा शुरू होने से पहले मुख्य यजमान ज्ञान प्रकाश सिंह ने सपरिवार व्यासपीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी। तत्पश्चात कथा शुरू हुई। अंतरराष्ट्रीय कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि सतयुग और त्रेता में धरती पर किसी भी मनुष्य की अकाल मृत्यु नहीं होती थी। मनुष्य के कर्मों के आधार पर द्वापर युग से अकाल मृत्यु की घटनाएं प्रारंभ हुई और अब कलयुग में इतना विस्तार हो गया है कि जन्म लेने वाला जातक कितने दिनों तक धरती पर रहेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है।
व्यासपीठ से महाराज ने धनुष भंग यज्ञ और भगवान के विवाह की कथा का मार्मिक ढंग से चित्रण करते हुए कहा कि कलयुग में मनुष्य के धरती पर आने और जाने का कोई समय तय नहीं है। माता-पिता के सामने ही पुत्र अथवा पुत्री की अकाल मृत्यु हो जाती है। हमारे सद्ग्रंथ बताते हैं कि जीव के अपने कर्म ही उसके प्रारब्ध का निर्माण करते हैं। भगवान की माया प्रकृति मनुष्य को नचाती है। मनुष्य के अपने हाथ में कुछ भी नहीं है फिर भी वह लोगों से उलझता चलता है, अभियान में रहता है। 4 दिन की जिंदगी है सबसे प्रेम मोहब्बत करके जीवन यापन करना चाहिए क्योंकि इस जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है, कब सांसें थम जाए। जाने के बाद सिर्फ उसका कीर्ति का ही गान होता है।
महाराज ने कहा कि इस युग में भी भगवान की भक्ति करने वालों भक्तों की कमी नहीं है। भक्त को किसी को अपना परिचय नहीं बताना पड़ता है। आहार-विहार और व्यवहार से भक्त के बारे में स्वयं पता चल जाता है। जैसे नशेड़ी समय निकालकर अपना नशा कर लेते हैं वैसे ही भक्त भी किसी भी समय अपने भगवान का भजन कर लेते हैं। महाराज जी ने कहा कि निरंतर भजन में रहने वालों की कभी मृत्यु नहीं होती है वह अपनी कीर्ति से कुल परंपरा का निर्माण करते हैं और संसार में अमर हो जाते हैं।
महाराज जी ने कहा कि सनातन परंपरा में विवाह संस्कार को समाज का मेरुदंड बताया गया है। सत्कर्म सोचने से नहीं होता है। सत्कर्म के लिए सोचने वाले सोचते रह जाते हैं लेकिन करने वाला उस कार्य को पूरा कर ले जाता है। मनुष्य को अपने जीवन में अपने कर्म को हमेशा धर्म सम्मत करने की आवश्यकता होती है। महाराज जी ने कहा कि मनुष्य के जीवन में सुख और दुख दोनों का आना निश्चित है। एक आता है तो एक चला जाता है। दुख हो या सुख, दोनों ही कर्मों के अनुसार ही मनुष्य के जीवन में आता है। यह कथा सेवा भारती के बैनर तले चल रही है।
इस मौके पर एमएलसी विद्यासागर सोनकर, माध्यमिक शिक्षक संघ ठकुराई गुट के संरक्षक रमेश सिंह, प्रधानाचार्य डॉ. राकेश सिंह, डॉ. प्रमोद श्रीवास्तव, जितेंद्र यादव, डॉ. वेदप्रकाश, अमित सिंह, माउंट लिट्रा जी स्कूल के निदेशक अरविंद सिंह, शिवा सिंह, शिक्षक नेता दीपक सिंह, रजनीश श्रीवास्तव, जूनियर शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष अरुण सिंह, मुरली पाल सहित भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।