कांवड़ यात्रा में पारंपरिक वाद्य यंत्रों की जगह, कानफाडू/जानलेवा डी.जे. को अनुमति देना पूरी तरह गलत है, धर्म विरुद्ध आचरण है और यह धर्म में राजनीति घुसाने जैसा है। धार्मिक यात्रा का राजनीतिक प्रयोग करने से सभी को दोष लगेगा।
समय सीमा या डेसीबल सीमा का उल्लंघन होने पर अगर पुलिस कार्रवाई नहीं करे तो जनता के लिए अदालत का दरवाजा भी खुला है और गूगल प्ले स्टोर से UPCOP को डाउनलोड करके घर बैठे भी “धार्मिक ध्वनि प्रदूषण” के खिलाफ मुकदमा कराया जा सकता है।
-स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य
वाराणसी, 17 जुलाई 2024 ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ, वर्ष 2008 से लगातार अभियान चलाने वाली संस्था ‘सत्या फाउण्डेशन’ के सचिव चेतन उपाध्याय ने आज बुधवार की सुबह, काशी के श्री विद्या मठ में ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी से मुलाकात की और इस बात पर चिंता जाहिर की कि तेज आवाज में लाउडस्पीकर और डी.जे. के कारण, पूरे उत्तर प्रदेश में आये दिन होने वाली हिंसा और हत्याओं के बावजूद योगी आदित्यनाथ सरकार इस मुद्दे पर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। डी.जे. के शोर में कई बार बलात्कार पीड़िता की चीख दब जा रही है। धर्म, मानवता, मानवों और अन्य जीव जंतुओं की ह्त्या करने वाले डी.जे. और तेज लाउडस्पीकर के मारक शोर से आत्मरक्षा के लिए लोग आगे बढ़ कर विरोध कर रहे हैं। इस क्रम में कई बार मारपीट, हिंसा और हत्या के बावजूद, शोर के खिलाफ पर्यावरण संरक्षण एक्ट-1986 के तहत, स्वतः संज्ञान लेकर, Proactive कार्रवाई का चलन नहीं होने से, पूरे उत्तर प्रदेश में धर्म की आड़ में, अशांति और अराजकता बढ़ती ही जा रही है। जो लोग मुस्लिमों के लाउडस्पीकर को ‘तुष्टीकरण की राजनीति’ बताते थे, आज उनके सत्ता में आने के बाद भी मस्जिद का शोर जारी है. और अब सरकार में बैठे लोग, सावन में, पूरे एक महीने तक, दिन-रात, नॉन स्टॉप 720 घण्टे तक, सड़क पर काँवरियों का डी.जे. बजवा कर ‘धार्मिक’अत्याचार करेंगे।
आम जनता की इस बहुत बड़ी समस्या पर अपने विचार रखते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने कहा कि कांवड़ यात्रा में नौजवानों और आम जनता का उत्साह होना बहुत अच्छी बात है मगर हर धार्मिक कार्य की एक मर्यादा और अनुशासन होता है। कांवड़ यात्रा में पारंपरिक वाद्य यंत्र जैसे ढोल, मजीरा, शंख, घंटा, घड़ियाल आदि तो ठीक है मगर कानफाडू, हार्ट अटैक ला देने वाले डी.जे. साउंड सिस्टम का उपयोग करना धर्म की हत्या करने जैसा है। कांवड़ यात्रा में परम्परागत वाद्य यंत्रों की जगह, कानफाडू/जानलेवा डी.जे. को, खुद सरकार द्वारा अनुमति देना पूरी तरह गलत है, धर्म विरुद्ध आचरण है और यह धर्म में राजनीति घुसाने जैसा है। धार्मिक विधि को राजनीति के लिए उपयोग करना ठीक नहीं है क्योंकि उसका पुण्य नहीं मिलेगा, उल्टे पाप लगेगा। हो सकता है कि जो लोग राजनीति में धर्म का उपयोग कर रहे हैं, उनको मेरी बात अच्छी नहीं लगे मगर मेरा कार्य है, शास्त्रोचित सत्य को कहना। मैं सभी कांवड़ियो से अपील करता हूँ कि वे पवित्रता का संकल्प लेकर, कांवड़ यात्रा में पारंपरिक, धार्मिक वाद्य यंत्रों यथा ढोल. मजीरा, शंख, घण्टा, घड़ियाल का उपयोग करते हुए, नाच-गान और भगवान के नाम का संकीर्तन करते हुए, बिना किसी को तकलीफ देते हुए आगे बढ़ें और फिर भगवान शिव को जल चढ़ायें तो ऐसा करके उन्हें पुण्य फल की प्राप्ति होगी। किसी भी हाल में अपने साथ कानफाडू साउंड सिस्टम और डी.जे. लेकर नहीं चलें।
‘सत्या फाउण्डेशन’ द्वारा यह बताने पर कि रात में स्पीकर बॉक्स को पूरी तरह से, 100% स्विच आफ करने का नियम है क्योंकि स्पीकर बॉक्स का न्यूनतम ध्वनि स्तर भी रात के लिए निर्धारित ध्वनि स्तर से कहीं अधिक होता है मगर सरकारी सख्ती के अभाव में रात्रि 10 से सुबह 6 के बीच भी कांवड़िये डी.जे. पर उत्पात करते हैं और पूरी पूरी रात प्रदेश के करोड़ों लोग सो नहीं पाते और जनता द्वारा शिकायत करने पर भी पुलिस यह कहते हुए कार्रवाई नहीं करती कि यह ‘धर्म का मामला’ है, तो इसका उत्तर देते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए और ऐसी स्थिति में आम नागरिक का यह दायित्व बनता है कि वह थाने पर लिखित तहरीर दें और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के अंतर्गत मुकदमा नहीं होने पर 156/3 के तहत अदालत के आदेश से मुकदमा दर्ज करवायें। हालाँकि आजकल के इंटरनेट के युग में गूगल प्ले स्टोर से UPCOP नाम की एप्लिकेशन को डाउनलोड करके, घर बैठे भी मुकदमा कराया जा सकता है।