नशा यकीनन एक वैश्विक समस्या है। तमाम उपायों के बावजूद भी इस पर लगाम नही लग पा रही है।शुरू में तो आदमी संगति में फ़ंसकर या शौक़िया लेता है और बाद में गिरफ़्त में आ जाता है । उस पर निर्भरता बढ़ जाती है, आदमी उड़के बग़ैर रह नहीं पता। यह दशा अदमी को कहीं का नहीं छोड़ती।ख़ुद की सेहत, परिवार की स्थिति एवं मान- मर्यादा सब कुछ स्वाहा हो जाता है। इसमें सिर्फ़ हेरोईन या कोकिन्न ही नहीं सम्मिलित है, बल्कि अन्य मादक पदार्थ भी आते हैं। नशा, दिमाग़ और शरीर दोनो को नष्ट करता है। अतः सतर्क होने की ज़रूरत है। पूरी दुनिया में 247 मिल्यन लोग नशे की गिरफ़्त हैं। भारत में भी इनकी संख्या करोड़ों में है।गत दशक की तुलना में भारत में इसमें 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
कोई आनंद के लिए नशा करता है तो कोई ग़म मिटाने के लिए उसकी शरण में जाता है।नशा इंसान में निर्णय क्षमता, विवेक, स्मृति एवं कुछ सीखने की योग्यता भी खा जाता है।
यदि परिवार में नशा करने वाला कोई है, बचपन में ग़लत संगति,एवं मानसिक विकृतियाँ नशा की आदत की बढ़ाने में अहम हैं। नशे का आदी आदमी उसे बार बार लेना चाहता है, उसे किसी की चिन्ता नही होती और न मिलने पर अससहाय या बीमार महसूस करने लगता, कार्य क्षमता ख़त्म हो जाती है।
नशा मुक्ति अपरिहार्य है, मगर बहुत कठिन भी है।इसका कोई उपचार नही है, फिर भी नशे के आदी आदमी को मुक्ति के लिए कुछ उपाय किए जा सकते है। डॉक्टर से सलाह, मनोवैज्ञानिकों से परामर्श, ग़लत संगति से दूरी, रिश्तों में मज़बूती, ख़ुद की इच्छा शक्ति बढ़ाना, अच्छे कामों में मन लगाना, परिवार से निकटता एवं यह सोच कि ज़िंदगी इसके सिवा भी है, आदि नशा मुक्ति में सहायक हैं।
प्रो आर. एन सिंह, मनोवैज्ञानिक
पूर्व प्रफ़ेसर मनोविज्ञान, बी एच यू, वाराणसी