संकल्प सवेरा आप सभी का स्वागत करता है
आदत बन गए
पहले सिर्फ सुबह शुरू होती थी उनकी यादों संग
अब तो वो रातों के भी हमसाये बन गए
बातों का सिलसिला ऐसे आगे बढ़ा की
पता ही नहीं चला कब वो आदत बन गए
वो जीने के तौर तरीकों पे कब्जा करते चले गए
ख्वाहिशें चाहत बनी और चाहतें जरुरत में बदल गए
धीरे धीरे उनकी ऐसी लत लगी हमें की
पता ही नहीं चला कब वो आदत बन गए
संकल्प सवेरा आप सभी का स्वागत करता है
साथ न होते हुए भी, उनके होने का एहसास
हमको खुद से जुदा और बेगाना कर गए
जाने कैसे उनसे इस कदर जुड़े हम दिल से की
पता ही नहीं चला कब वो आदत बन गए
लेखिका- डॉ सरिता चंद्रा
बालको नगर कोरबा (छ.ग.)