स्त्री मुक्ति की चेतना और राम की शक्तिपूजा:डॉ. माधवम सिंह
संकल्प सवेरा। राम की शक्तिपूजा कविता यूं तो कई केंद्रीय तत्वों को धारण करती है, किंतु स्त्री मुक्ति की चेतना इस कविता के केंद्र में आद्यंत दिखाई देती है।इस कविता में राम का समूचा संघर्ष ही सीता की मुक्ति के लिए है।राम रावण (औपनिवेशिक सत्ता के साथ साथ असत का भी प्रतीक) से टकराते हैं, अत्यंत कठिन जीवन संघर्षों से गुजरे हैं, शक्ति की कठिन परीक्षा से गुजरते हैं, शक्ति की मौलिक कल्पना करते हैं ; यह सब सीता की मुक्ति के लिए ही करते हैं। निराला की राम की शक्तिपूजा कविता में सीता की मुक्ति ही स्त्री की मुक्ति है।इस कविता में निराला ने जितनी प्रखरता से कलात्मक संयोजन किया है उतनी ही प्रखरता से स्त्री मुक्ति की चेतना को आवाज भी दिया है। स्त्री मुक्ति की चेतना को केंद्र में रख कर इतनी महान और उदात्त कविता लिख देना महाप्राण निराला जैसे महान व दृष्टा कवि के लिए ही संभव था।
निराला की राम की शक्तिपूजा कविता में कथानक का उद्देश्य सीता की मुक्ति है। जब भी राम को लगा कि सीता की मुक्ति अब नहीं हो पाएगी उनका मन आत्मधधिक्कार से भर गया है। शक्ति पूजा का अंतिम इंदीवर जब शक्ति उठा लेती हैं और पुष्प को गायब देखकर राम के मन की अवस्था देखिए –
“धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध,
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका”
राम का यह आत्मधिक्कार विजय पाने के लिए या सिद्धि पाने के लिए नहीं है।यह सिर्फ सीता की मुक्ति के लिए है।
सीता-मुक्ति के लिए रावण से हो रहे युद्ध में राम कई बार ‘अमानिशा’ और घोर निराशा की स्थित में पहुंच जाते हैं। उन्हें संशय बहुत व्याकुल करने लगता है। रावण के जय की कल्पना करते ही उनका हृदय भय से बैठ जाता है।
“स्थिर राघवेंद्र को हिला रहा फिर-फिर संशय,
रह-रह उठता जग जीवन में रावण-जय-भय;”
ऐसी स्थिति में सीता की स्मृति से ही राम के मन में आशा का संचार होता है, उम्मीद की किरण फूटती है-
“ऐसे क्षण अंधकार घन में जैसे विद्युत
जागी पृथ्वी-तनया-कुमारिका-छवि, अच्युत
देखते हुए निष्पलक, याद आया उपवन
विदेह का,—प्रथम स्नेह का लतांतराल मिलन
नयनों का—नयनों से गोपन—प्रिय संभाषण,
पलकों का नव पलकों पर प्रथमोत्थान-पतन,”
सीता की स्मृति इतनी शक्तिदायक है कि घोर निराशा और हताशा में डूबा लगभग पराजय को स्वीकार चुका मन अचानक से दुनिया की किसी भी शक्ति को हरा कर‘ विश्वविजय’ की भावना से भर जाता है।
“ सिहरा तन, क्षण-भर भूला मन, लहरा समस्त,
हर धनुर्भंग को पुनर्वार ज्यों उठा हस्त,
फूटी स्मिति सीता-ध्यान-लीन राम के अधर,
फिर विश्व-विजय-भावना हृदय में आई भर,”
सीता की मुक्ति के लिए राम कठिन से कठिन साधना करने के लिए तैयार हैं। स्त्री मुक्ति की बाधक शक्तियों का सिर्फ बल से ही सामना नहीं किया जा सकता,उसके लिए रचनात्मक शक्तियां भी अनिवार्य होती हैं। रावण के बल का अनुमान लगा कर ही जामवंत राम को ‘शक्ति की मौलिक कल्पना’ की प्रेरणा देते हैं।
“शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन,
छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनंदन!”
राम शक्ति की मौलिक आराधना में खुद को समर्पित करते हैं। शक्ति की परीक्षा से राम का मन टूट जाता है। किन्तु तभी राम ‘जानकी के उद्धार न होने’ को याद कर निराशा और पराजय बोध को छोड़ एक नए मन और व्यक्तित्व के साथ उठ खड़े होते हैं।राम का यह मन रचानात्मक ऊर्जा से भरा हुआ मन है जो बिना डिगे किसी भी परिस्थिति का सामना पूरे साहस से करता है और विश्वविजय करता है।
“वह एक और मन रहा राम का जो न थका;
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय
कर गया भेद वह मायावरण प्राप्त कर जय,”
राम का मन सीता की मुक्ति के लिए इतना समर्पित और प्रतिबद्ध है कि आंख निकालकर चढ़ा देना उसके लिए छोटी बात है।राम का यह समर्पण और प्रतिबद्धता ही तो उन्हें विकट युद्ध में टिकाए हुए है, अन्यथा रावण जैसी असत शक्ति के आगे खड़े रह पाना भी संभव नहीं प्रतीत होता था।राम सीता की मुक्ति के लिए शक्ति की मौलिक आराधना पूरी करने लिए कमल के स्थान पर अपनी आंख निकलकर देने की तैयारी कर रहे हैं कि तभी शक्ति प्रसन्न हो कर राघव का हाथ थम लेती हैं।
“दो नील कमल हैं शेष अभी, यह पुरश्चरण
पूरा करता हूँ देकर मातः एक नयन।”
नारी मुक्ति निराला की राम की शक्तिपूजा कविता का केंद्रीय और स्थाई भाव है।इस कविता में सीता स्त्री शक्ति का प्रतीक हैं। जिनकी मुक्ति से ही समाज पूर्ण हो सकता है । निराला यह भी रेखांकित करते हैं कि स्त्री की मुक्ति के लिए राम जैसे समर्पण और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। ऐसे समर्पण व प्रतिबद्धता से ही स्त्री मुक्ति की बाधक शक्तियों को पराजित किया जा सकता है। स्त्री मुक्ति के लिए केवल परंपरागत शक्तियां ही कारगर नहीं हो पाएंगी उसके लिए राम की भांति शक्ति की साधना से मौलिक शक्तियां भी अर्जित करनी होगी। शक्ति का “होगी जय, होगी जय हे! पुरुषोत्तम नवीन” कह कर राम के वदन में लीन होना इस बात को दर्शाता है कि स्त्री शक्ति की रचनात्मक ऊर्जा को अंतःकरण के स्तर पर धारण किए बिना, उसे बहुत गहराई से अनुभव किए बिना स्त्री-मुक्ति का संग्राम हो या स्वाधीनता का संग्राम, जीता नहीं जा सकता।रावण ने भी शक्ति की कठोर उपासना की थी। रावण की साधना के सम्मान के लिए शक्ति उसके साथ बाह्य रूप से थीं । रावण का उद्देश्य अपवित्र था , स्त्री को कैद करना था , शोषण का साम्राज्य फैलाना था। किंतु जब राम शक्ति की कठोर साधना करते हैं तो अंततः शक्ति उनके भीतर प्रविष्ट कर जाती हैं,राम के अंतःकरण में लीन हो जाती हैं। अंततोगत्वा राम शक्ति के सहारे रावण को परास्त कर सीता की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। स्त्री की स्वाधीनता और देश की स्वाधीनता के प्रश्न को निराला ने समानांतर रूप से उठाया है। निराला के लिए आज भी राष्ट्र- मुक्ति का लक्ष्य तब पूर्ण होगा ,जब-स्त्री मुक्ति का संकल्प पूर्ण होगा।इस प्रकार राम की शक्तिपूजा कविता में हमें निराला की नारी- मुक्ति चेतना का चरम विकास दिखाई देता है।
डॉ. माधवम सिंह
हिंदी विभाग
शहीद स्मारक राजकीय महाविद्यालय, यूसुफपुर, मुहम्मदाबाद, गाज़ीपुर