गभिरन (जौनपुर) 2 मार्च। पट्टीनरेन्द्रपुर बाजार में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में श्रद्धालुओ को संबोधित करते हुए प्रशान्त जी महराज ने कहा कि भगवान को पाने के लिए हम वर्षों पूजा-अर्चना करते है। मंत्रों का जाप करते है। उसके बाद भी उनके दर्शन नहीं हो पाते। भगवान तो भक्तवत्सल है। उन्हें पाने के लिए अपने चित्त और मन को एकाग्र तो करो। फिर देखो वे कैसे बंधे चले आते है। मन को केन्द्रित करने लिए धार्मिक उत्सव में अवश्य सामिल हों। कही भागवत कथा हो रही हो तो उसका श्रवण पूरे परिवार के साथ करना चाहिए। ताकि बच्चों के अंदर संस्कार जागृत हो सके।
श्री महराज ने कहा कि मानव के जीवन का सर्वश्रेष्ठ साधन उसके सत्कर्म हैं। कर्म के अनुसार मनुष्य सुख एवं दुख प्राप्त करता है। जैसा भी कर्म मनुष्य करता है वह उसका फल अवश्य पाता है। चाहे वह अच्छा हो या बुरा। कर्म से श्रेष्ठ कोई भी साधना नहीं है। उन्होंने कहा कि अहंकार मनुष्य के विनाश और पतन का मुख्य कारण बन जाता है। मिथ्या अहंकार में मनुष्य स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने के लिए कई मार्ग अपनाता है। इससे मनुष्य का पतन निश्चित होता है। उन्होंने
गोकुल से मथुरा गमन व कंस वध एवं रुक्मिणी विवाह की कथा सुनाकर श्रोताओं में भक्ति,ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी बहा दिया। इस मौके पर संतोष अग्रहरि, चिंतामणि मिश्र, चंद्र प्रकाश उपाध्याय, आनंद प्रकाश सिंह आदि मौजूद रहे।