जैसे कोई भी चीज टूटती है, दो या अनेक टुकड़ों में, जैसे वो उस गाने में कहती है कि “शीशा हो या दिल हो, आखिर टूट जाता है,” तो क्या सचमुच दिल शीशे की तरह टुकड़े-टुकड़े होकर टूटता है? दिल के टूटने का मतलब क्या है? “टूटे हुए दिल पर पतझड़ का मौसम धीरे-धीरे आता है. आहिस्ता से पीले पड़ते हैं पत्ते, चुपके से बेआवाज झर जाते हैं. धीरे-धीरे होता है पेड़ ठूंठ, दिल बंजर, आखिरी विदा से पहले.”
– गुंटर ग्रास
वो होकर भी न हो सकी प्रिंसेज थी और वो पाकिस्तान से आया दिल के डॉक्टर. प्रिंसेज डायना की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘डायना’ में एक जगह वो डॉ. हसनत खान से पूछती है, “क्या दिल सचमुच टूटता है?” हसनत उसे डॉक्टरी भाषा में जवाब देने की कोशिश करते हैं, लेकिन वो फिर पूछती है, “बट, डज इट रिअली ब्रेक?”

क्या सचमुच? जैसे कोई भी चीज टूटती है, दो या अनेक टुकड़ों में, जैसे वो उस गाने में कहती है कि “शीशा हो या दिल हो, आखिर टूट जाता है,” तो क्या सचमुच दिल शीशे की तरह टुकड़े-टुकड़े होकर टूटता है? दिल के टूटने का मतलब क्या है? टूटा हुआ दिल कैसा दिखाई देता है? टूटने के बाद उसका क्या होता है? क्या दिल का टूटना दिल का मर जाना है, नष्ट हो जाना? तो क्या नष्ट होने के बाद भी कुछ बचता है? या विज्ञान की भाषा में कहें तो दिल पदार्थ (मैटर) है, न बनाया जा सकता है, न मिटाया. वो बस अपना रूप बदल सकता है.
किसी का टूट जाना, किसी का छूट जाना, प्यार का मुकम्मल न हो पाना या उसका ठुकरा दिया जाना. किसी गहरे भरोसे का टूट जाना या किसी अपने का मर जाना. ये सारी वजहें हो सकती हैं किसी दिल के टूट जाने की. लेकिन सवाल फिर भी यही है कि ये टूटा हुआ दिल क्या बला है.
क्या बुद्ध का दिल टूट गया था, जब वो सब राजपाठ, महल छोड़ जंगलों में चले गए थे. नीत्शे जब उस मार खा रहे घोड़े के गले से लिपटकर रोया और फिर पागल हो गया तो क्या उसकी वजह उसके दिल का टूट जाना था. विन्सेंट वैन गॉग ने सूरजमुखी के खेत रंगों से बनाए थे या टूटे हुए दिल से. बीथोवन को जब सुनना बंद हो गया तो क्या उसका टूटा दिल कान बन गया था क्योंकि बिना सुने कोई पियानो कैसे बजा सकता है. फ्रीडा काल्हो की तो कितनी पेंटिंग्स में उसे कभी चाकू तो कभी तीरों ने बींध रखा है. फ्रीडा की एक पेंटिंग है, “मैमोरी द हार्ट,” जो उसके टूटे हुए दिल की कहानी है. लोग कहते हैं, मर्लिन मुनरो ने न आत्महत्या की, न उसकी हत्या हुई. वो टूटे हुए दिल के कारण मरी थी. क्या ये बात सच है?
हावर्ड फास्ट के उपन्यास ‘स्पार्टाकस’ में एक टूटे दिल वाली औरत का जिक्र है. वो लिखते हैं कि गुलाम ग्लेडिएटरों को खाने को बढ़िया मांस और भोगने को औरत मिलती थी. इसी तरह ग्लेडिएटर स्पार्टाकस को भी एक औरत दी गई. जब वो कमरे में आई तो बिलकुल निर्वस्त्र थी. सिर झुकाए, नजरें नीची किए हुए. स्पार्टाकस ने उसे आदर से देखा और एक शब्द भी बोले बगैर अपनी चटाई उसकी ओर खिसका दी. स्पार्टाकस ने उसके साथ कुछ नहीं किया. कुछ देर बाद वो चटाई पर और स्पार्टा जमीन पर सो गया. हावर्ड फास्ट ने कमरे में आई उस औरत के लिए लिखा था कि वो “टूटे हुए दिल वाली औरत” थी, जिसकी निर्वस्त्र देह पर जगह-जगह नाखूनों और दांत काटे के निशान थे. उन्होंने उसे कुछ इस तरह लिखा था कि “टूटे हुए दिल” पर काफी जोर था.
याद करिए, वो एतिहासिक चित्र, “ए गर्ल विद ए पर्ल ईयररिंग.” कई बार ऐसा होता है कि शेख्सपियर के नाटकों के चरित्र इसलिए मर जाते हैं कि उनका दिल टूट गया या उन्होंने किसी का दिल तोड़ दिया. ये दिल ही एक ऐसी चीज है शायद, जिसके टूटने और तोड़ देने का असर एक जैसा है. जैसे गोली किसी और पर चलाई हो और वो पलटकर खुद पर ही आ लगे.
शेख्सपियर से भी 200 साल पहले पैदा हुए रूमी तो मानो गोली खाने को ही तैयार बैठे थे. वो उस दिल के तब तक टूटते जाने की कामना करते हैं, जब तक वो पूरी तरह खुल ही न जाए. खुल जाए तो ढंग से रौशनी आए. रौशनी आए तो ढंग से सब दिखाई दे. जो पूरी तरह न भी खुला हो और सिर्फ दरारें पड़ी हों दिल पर तो भी बकौल रूमी, “उन्हीं दरारों से होकर आएगी रौशनी.” रौशनी मतलब जिंदगी. इस तरह रूमी को तो नहीं लगता कि दिल का टूट जाना मर जाना है. उन्हें लगता है कि दिल का टूट जाना आंखों का खुल जाना, नजर का धुल जाना और रौशनी का चले आना है. और अगर सचमुच ऐसा ही है तो खुदा करे कि रौशनी की खोज में भटकते दिल बार-बार टूटें और तब तक टूटते रहें कि जब तक पूरी तरह खुल ही न जाएं. खैर, कविताओं और कला से इतर एक संसार ठोस विज्ञान का भी है. विज्ञान, जिसकी हर कोशिश, हर मेहनत का एक ही मकसद है कि कैसे इस जिंदगी की मियाद लंबी की जा सके. जो जिंदगी से खार खाए मरने को तैयार बैठे हैं, विज्ञान उन्हें भी जिंदा रखना चाहता है. तो मृत्यु से ज्यादा जिंदगी में यकीन पालने वाले उस विज्ञान की मानें तो ये दिल शरीर के बीचोंबीच कुछ बाएं हटकर बैठा मांस का एक लोथड़ा भर है, जिसमें हजारों धमनियां, शिराएं, तंत्रिकाएं हैं. आकार एक मुट्ठी के बराबर. अंदाजन 12 सेंमी लंबा, 8 सेंमी चैड़ा और 6 सेंमी मोटा. वजन कुछ ढाई सौ से साढ़े तीन सौ ग्राम. इतने मामूली, इतने पिद्दी से जान पड़ने वाले इस दिल की महिमा विज्ञान कुछ इस तरह बखान करता है कि ये जो दिल है, वो हमारे धरती पर आने के दिन से लेकर जाने के दिन तक साल के 365 दिन, 24 घंटे लगातार काम करता है, बिना रुके, बिना थके. विज्ञान को दिल के टूट जाने की थियरी पर कोई यकीन नहीं.