स्वतंत्रता आंदोलन में काशी से आवाज बुलंद हो रही थी इसी आवाज को बुलंद करता एक नौजवान चंद्रशेखर आजाद का जज्बा ऐसा था कि वो पीठ पर कोड़े खाते रहे और वंदे मातरम् का उद्घोष करते रहे.
वाराणसी: मन में अगर आजादी का जज्बा हो तो काशी का दौरा अवश्य बन जाता है. यहां की सेंट्रल जेल में उस क्रांतिकारी को 14 कोड़ो की सजा मिली थी जिसका नाम चंद्रशेखर आजाद है. आज भी देश की आन बान और शान पर कुर्बान होने वाले महान क्रांतिकारी की भूमि लोगों की आस्था का केंद्र है.
चंद्रशेखर काशी में बने आजाद
वाराणसी की सेंट्रल जेल आजादी के इतिहास की गवाही देती है. काशी में वेदपाठ की शिक्षा ग्रहण करने आये चंद्रशेखर तिवारी जो बाद में चंद्रशेखर आजाद कहलाये. आजादी के आंदोलन में यहां बन्द थे और भारत माता का वीर सपूत ने न सिर्फ भारत माता का जयकारा लगाया, बल्कि अपना नाम काशी में भी आजाद रखा. जो आगे चलकर चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाने गए.
बीएचयू इतिहास विभाग के प्रोफेसर राजीव श्रीवास्तव की माने तो चंद्रशेखर आजाद काशी में शिक्षा ग्रहण करने आये और स्वन्त्रता आंदोलन का हिस्सा बने. हमेशा अंग्रेजो से लोहा लेते रहे काशी की मिट्टी से उन्हें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकने की हिम्मत मिली. उन्हें जिस जगह कोड़े मारे गए थे वो जगह आज भी मौजूद है. और देश प्रेमी वहां जाकर नमन करना नहीं भूलते.
सेंट्रल जेल में मौजूद आजाद स्मृति पर चढ़ते हैं श्रद्धा के फूल
स्वतंत्रता आंदोलन में काशी से आवाज बुलंद हो रही थी इसी आवाज को बुलंद करता एक नौजवान चंद्रशेखर आजाद का जज्बा ऐसा था कि वो पीठ पर कोड़े खाते रहे और वंदे मातरम् का उद्घोष करते रहे. और जिस जगह कोड़े मारे गए आज भी उस जगह पर श्रद्धा के फूल चढ़ाए जाते हैं. सेंट्रल जेल के अधीक्षक अरविंद कुमार सिंह की माने तो कैदी हो या अफसर आजाद के स्मृति स्थल पर फूल चढ़ाना नहीं भूलता.
चंद्रशेखर आजाद की कहानी
चंद्रशेखर आजाद की जीवनी पर गौर करें तो आजाद ने 14 साल की उम्र से क्रांति का रास्ता चुन लिया. इनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले का भाबरा में हुआ था. 14 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर आजाद गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़े और आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने के दौरान गिरफ्तार हुए. कहा जाता है कि जब ये जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए तब जज ने जब उनका नाम पूछा तो पूरी दृढ़ता से उन्होंने कहा कि आजाद.
पिता का नाम पूछने पर जोर से बोले स्वतंत्रता, पता पूछने पर बोले जेल है मेरा पता. इस पर जज ने उन्हें सरेआम 14 कोड़े लगाने की सजा सुनाई. ये वो पल था जब उनकी पीठ पर कोड़े बरस रहे थे और वो वंदे मातरम् का उदघोष कर रहे थे.
तभी उन्होंने कहा था कि मैं आजाद हूं और ये ही वो दिन था जब से देशवासी उन्हें आजाद के नाम से पुकारने लगे थे. 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने वाले चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजो से लोहा लेते शहीद हुए. काशी की मिट्टी से क्रांति का अलख जगाने आजाद को आज सेंट्रल जेल पहुंचकर हर कोई नमन करता है.












