छम-छम कर पायल छमकें,
धक-धक करके दिल धड़के।
तेरे पैरों की पैंजनी जब बाजें,
तेरे यौवन चमक-चमक चमके।।
तेरे मांथे की बिंदी, पैरों के पायल,
तेरा रंग रूप करते मुझको घायल।
नाक की नथुनी, माथे की सिंदूर
बना देती मुझे तेरी यवन का कायल।।
तेरी पायल की झम-झम सुन,
हो जाता सजनी मैं मदहोश।
तेरी सौंदर्य का क्या तारीफ करूं,
नहीं है तेरे सौन्दर्य पर शब्दकोश।।
तेरे मांग का सिंदूर, गले का मंगलसूत्र,
बढ़ाता मेरे जीवन का आधार-सूत्र।
जब तुम संस्कारों से संवरती हो,
सच कहूं चांद सी निखरती हों।।
तेरे पायल की छम-छम,
तेरी चूड़ियों की छन-छन।
ओह मेरी सजनी,
सुन दौंडा आऊं मैं हरदम।।
तेरे पैरों के बजतें पायल,
कर देते मुझको घायल।
तेरी प्रेममय यादें,
हैं मुझे खूब सतातें।।
सजनी तेरे पैरों के ये पायल,
दिल को मेरे लगते मनभावन।
सुन पायल की झम-झम,
हर मौसम लगता मुझको सावन।।
अंकुर सिंह
चंदवक, जौनपुर,
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