संकल्प सवेरा. पिछले साल योगी सरकार के खिलाफ चलाए गए अभियान से शायद भाजपा ने सबक ले लिया है?. आपको याद होगा कि पहले कमलेश तिवारी हत्याकांड और फिर विकास दुबे एनकाउंटर मामले के बाद किस तरह पूरे प्रदेश में सोशल मीडिया के जरिये यह कैम्पेन चलाया गया था कि सूबे की योगी सरकार ब्राह्मण विरोधी है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती भी इस जंग में कूद पड़े थे. आम आदमी पार्टी ने तो बकायदा एक सर्वे तक करा डाला था कि योगी राज में कैसे सिर्फ ठाकुरों के काम हो रहे हैं. अब लगता है भाजपा नेतृत्व ने इसे गंभीरता से ले लिया है और ब्राह्मणों को गोलबन्द करने की कवायद शुरू कर दी है. पिछले दो दिनों में तीन ऐसे घटनाएं हुई हैं, जिससे यह चर्चा जोरों से चल पड़ी है कि भाजपा ब्राह्मणों को मनाने में जुट गयी है.
कौन हैं वो तीन कारण
जितिन प्रसाद का भाजपा में आना तीनों कारणों में सबसे बड़ा दिखाई दे रहा है. नाम से भले ही जाहिर न हो लेकिन जितिन प्रसाद ब्राह्मण परिवार से आते हैं. उनके परिवार का ऊंचा राजनीतिक कद रहा है. जितिन पहचान के मुहताज नहीं हैं, लेकिन यह जरूर है कि उनकी पहचान एक स्थापित ब्राह्मण नेता के तौर पर भी नहीं रही है. इसीलिए जितिन ने ब्राह्मण चेतना परिषद के जरिये अपनी इस छवि को उभारने की कोशिश की. उन्हें शामिल करके भाजपा ने संदेश देने की कोशिश की है कि वो ब्राह्मण विरोधी नहीं है. जानकारो की माने तो आने वाले दिनों में भाजपा जितिन को पूरे प्रदेश में ब्राह्मणों को गोलबन्द करने के लिए लगाएगी. हालांकि, ऐसा नहीं है कि ब्राह्मणों ने भाजपा का दामन छोड़ दिया है, लेकिन पार्टी किसी भी आशंका को दूर करना चाहती है.
लक्ष्मीकांत बाजपेयी के घर दस्तक
2017 में मिली हार के बाद लक्ष्मीकांत बाजपेयी वनवास में चले गये. उनका तो जैसे प्रदेश में और पार्टी में कोई नाम लेने वाला ही नहीं बचा. साढ़े चार साल के बाद अचानक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह 8 जून को बाजपेयी से शिष्टाचार मुलाकात करने उनके घर पहुंच गये.
अनूप चन्द्र पांडेय को चुनाव आयुक्त की कुर्सी
भाजपा की सरकार ने एक और ब्राह्मण चेहरे को अचानक तवज्जो दे दी. साल 2019 में रिटायर हुए यूपी कैडर के IAS अनूप चन्द्र पांडेय को नया चुनाव आयुक्त बना दिया गय़ा. इसे भी ब्राह्मणों को रिझाने के स्टेप के तौर पर देखा जा रहा है. अब सवाल उठता है कि जिस पार्टी को ब्राह्मणों की पार्टी कहा जाता रहा है, उसे इस वर्ग को लुभाने की क्या जरूरत पड़ गयी? वैसे भी पार्टी के भीतर ब्राह्मण नेताओं की कमी तो है नहीं और न ही भाजपा ने उन्हें किनारे किया है. श्रीकांत शर्मा, दिनेश शर्मा, बृजेश पाठक, रीता जोशी सभी ब्राह्मण ही तो हैं और ओहदेदार भी.भले ही ब्राह्मण वर्ग के नेताओं को डिप्टी सीएम या मंत्री बनाया गया हो लेकिन प्रदेश स्तर पर ब्राह्मणों को गोलबन्द करने में लगभग सभी नाकाम ही रहे हैं. बड़े ब्राह्मण नेताओं के सक्रिय राजनीतिक जीवन से ओझल होने के बाद उनके कद का कोई दूसरा नेता भाजपा में बन नहीं पा रहा है. ऊपर से सरकार की ब्राह्मण विरोध के आरोपों पर घेरेबन्दी से चिन्ता और बढ़ गयी. ऐसे में पार्टी ने अन्य विकल्पों को तलाशा है.
आखिर ब्राह्मण क्यों हैं जरूरी?
चुनावी राजनीति पर गहराई से शोध करने वाली संस्था गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर शिल्पशिखा सिंह ने इसका सटीक जवाब दिया. उन्होंने कहा कि सवर्णों की संख्या कहीं भी ज्यादा नहीं है, लेकिन उनमें कुछ ऐसी खूबियां हैं जो किसी में नहीं हैं. इनमें भी ब्राह्मण सबसे आगे है. ब्राह्मण वर्ग ओपिनियन मेकिंग का काम करता है. उनकी वैचारिक पकड़ हमेशा से ज्यादा रही है. सोशल नेटवर्किंग बहुत स्ट्रांग है. इसीलिए वे एक प्रेशर ग्रुप की तरह काम करते हुए दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. इसीलिए सभी पार्टियों के लिए ब्राह्मण जरूरी हैं. इसे विडम्बना ही कहेंगे कि दूसरे समुदाय के नंबर तो ज्यादा हैं, लेकिन वे अपनी सोच को स्थापित नहीं कर पा रहे हैं.साभार न्यूज 18 हिन्दी