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माना कि हम चमन को गुलज़ार न कर सके कुछ खार कम हो सके, गुजरे जिधर से हम

Admittedly we could not make Chaman Gulzar Something can be reduced, from where we

Sankalp Savera by Sankalp Savera
April 16, 2025
in Jaunpur
0
माना कि हम चमन को गुलज़ार न कर सके कुछ खार कम हो सके, गुजरे जिधर से हम

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“माना कि हम चमन को गुलज़ार न कर सके
कुछ खार कम हो सके, गुजरे जिधर से हम।”

आदरणीय हरिबंश जी ने चंद्रशेखर जी को भारतीय राजनीति का ‘लास्ट आइकॉन’ कहा है। सोचता हूँ कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा?

आज स्व.चंद्रशेखर जी का जन्मदिवस है तो यह उपयुक्त अवसर है कि इस कथन के पीछे छिपे निहितार्थ को खोजा जाए।

इसके पीछे बहुतेरे के कारण हो सकते है जैसे- जब राजनीति के सारे योद्धा उदारीकरण की शक्तियों के शरण में जा चुके थे। और जब भारतीय राजनीति ‘मंडल’ और ‘कमंडल’ खेल रही थी तब चंद्रशेखर जी अकेले ‘भूमंडल’ का विरोध कर रहे थे। वे अकेले ‘वाशिंगटन कांसस’ की शक्तियों से लोहा ले रहे थे। जब देश के दल और नेता जाति और धर्म के सहारे अपने अस्तित्व को बचाने में लगे थे तब वह देश को बचाने की जद्दोजहद कर रहे थे। जब अधिकांश नेता महलों को रोशन करने की जुगत भिड़ा रहे थे तब चंद्रशेखर जी कह रहे थे – “यदि हम झोपड़ियों में एक मोमबत्ती जलाना चाहते हैं, तो हमें महलों की चमकती रोशनी को मद्धिम करना होगा।”

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जब देश के अन्य नेता भारत को पूंजी और तकनीक के सहारे 21वीं सदी में ले जाने का सपना बेच रहे तब चंद्रशेखर जी भूमंडलीकरण-उदारीकरण-निजीकरण की चालित शक्ति ‘पूँजी और तकनीक’ को नकार ‘श्रम’ की महत्ता स्थापित करते हुए घोषणा कर रहे थे कि – ‘हमारे देश की सबसे बड़ी संपत्ति है- श्रम शक्ति न कि खजाना, उद्योग तथा संपत्ति… 88 करोड़ इंसानी भुजाओं के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।’

यह चंद्रशेखर जी ही थे जो उस दौर में निराश हो चुकी जनता में आशा का संचार कर एक नई शुरुआत का आवाहन कर रहे थे। देश के भविष्य को सुरक्षित करने का आवाहन करते हुए कह रहे थे कि – ‘हमारी श्रम शक्ति का सहयोग ही, चाहे वह कारखानों में कार्यरत हो या खेतों में इस देश का भविष्य बचा सकता हैं।’

अन्य कारण भी रहे मसलन कुख्यात आपात काल के दौरान सिद्धान्तों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता। जब देश ने ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ घोषित कर दिया था। पक्ष की कौन कहे, विपक्ष के लोग भी डफ़ली बजा बजा के भारत के गांवों में इंदिरा के तानाशाही नीतियों का गुणगान कर रहे थे। तब अकेले चंद्रशेखर जी में यह साहस था कि वह इंदिरा जी से कांग्रेस के समाजवादी चरित्र पर प्रश्नोत्तर कर रहे थे व असफल होने पर कांग्रेस को विघटित करने का निश्चय सुना रहे थे। इससे भी बढ़कर आपातकाल के दौरान जब किसी में इंदिरा जी के मुखालफत का साहस नहीं था तब वह चंद्रशेखर जी ही थे जो जय प्रकाश जी को तत्कालीन परिस्थितियों में सही कह रहे थे, जेपी को खुलमखुल्ला चाय पर आमंत्रित कर रहे थे और इंदिरा जी को आगाह कर रहे थे कि- ‘सत्ता को संत से नहीं टकराना चाहिए। इंदिरा जी को अपना हठ छोड़ देना चाहिए।’

कहा जाता है कि राजनीति सीढ़ियों का खेल है। सही समय पर छोटी सीढ़ी छोड़ बड़ी सीढ़ी पकड़नी पड़ती है तब जाके शीर्ष हासिल होता है। जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा की यह सीढियां आज भी लोगों को शीर्ष पर बैठा रही है लेकिन यह सिर्फ चंद्रशेखर जी ही थे जिन्होंने इन सीढ़ियों को कभी भी महत्व नहीं दिया। बस सिद्धांत के मजबूत दीवार से ही चिपके रहे। सोचिये कि क्या चंद्रशेखर जी मंडल रिपोर्ट जैसा आरक्षण कार्ड नहीं खेल सकते थे? क्या चंद्रशेखर जी उस दौर में रथयात्रा जैसा कुछ कर साम्प्रदायिक राजनीति नहीं कर सकते थे या कि चंद्रशेखर जी उदारीकरण की नीतियों को अनियोजित तरीके से लागू नहीं कर सकते थे ?(जैसे कि वह हुई)

जवाब है- नहीं करते। यदि चंद्रशेखर जी ऐसा कर देते तो वह फिर चंद्रशेखर क्या कहलाते और न ही उन्हें आज ‘लास्ट आइकॉन ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’ कहा जाता। न ही मैं आज इतनी श्रद्धा से यह लेख लिख पाता और न ही आप इस लिखे को पढ़ने का जहमत ही उठाते।

आज चंद्रशेखर जी का जन्मदिवस है। हम सब 130 करोड़ भारतीय ‘विशुद्ध भारतीयता की प्रतिमूर्ति’ चंद्रशेखर जी को नमन करते हैं।

विपरीत परिस्थितियों में साहस और विवेक पूर्ण ढंग से देश को नेतृत्व प्रदान करने के लिए आज देवभूमि से मैं उनकी आत्मा की शांति के निमित्त परमपिता से कामना करता हूँ।

वशिष्ठ नारायण सिंह

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