भारतीय ज्ञान परंपरा में समाहित है वैज्ञानिक दृष्टिकोणः प्रो. बीएल शर्मा
भारतीय ज्ञान परंपरा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन
जौनपुर,संकल्प सवेरा। भारतीय ज्ञान परंपरा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन बुधवार को वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के इनक्यूबेशन सेंटर, फार्मेसी भवन में किया गया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बीएल शर्मा ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा न केवल अध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि उसमें वैज्ञानिक चिंतन और तर्क शीलता की गहराई भी समाहित है।
उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा केवल ज्ञान का संचय नहीं, बल्कि व्यवहार में उतारने की प्रक्रिया है। इसमें प्रकृति, मानव और ब्रह्मांड के मध्य संतुलन की बात की गई है, जो आज के सतत विकास की अवधारणा से मेल खाती है।
उन्होंने कहा कि जीवन में विपत्ति से बचाव के पांच ही साधन है। मंत्र, मणि, औषधि, स्नान और दान। उन्होंने कहा कि श्रुति, स्मृति, सदाचार, आत्मा की आवाज से धर्म बनता है। साथ ही कहा कि हमारी संस्कृति भाषण से नहीं आचरण से सिखाने की है। पश्चिम ने मशीन को महत्व दिया हमारे देश ने मानव को प्रमुख माना। उन्होंने सनातन से लेकर आयुर्वेद और धर्म की विस्तार से व्याख्या की।
अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रोफेसर वंदना सिंह ने कहा कि जीवन में धर्म का आचरण करने से बहुत से समस्याओं का समाधान खुद ही हो जाता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत की परिकल्पना को एक वृक्ष के उदाहरण से समझाते हुए कहा कि जब वृक्ष हरा भरा रहेगा तभी वह विकसित होगा और अच्छे फल देगा। उन्होंने कहा कि हम भारतीय ज्ञान परंपरा पर शोध के लिए नया ग्रुप बना रहे हैं। इस संबंध में एक एमओयू भी शीघ्र किया जाएगा। बतौर मुख्य वक्ता बीएचयू के डॉ. एम. के सिंह चौहान ने कहा कि भारतीय परंपरा का मुख्य आधार संगीत रहा है। उन्होंने कहा कि मंत्रों के रिद्म, राग और उच्चारण का मानव के जीवन में अलग-अलग प्रभाव है। उन्होंने कहा कि बहुत से रोगों का निदान मेडिसिन से नहीं, थिरैपी और योग के माध्यम से संभव होता है। बीएचयू के आईएमएस प्रो. अजीत सिंह ने कहा कि भारत में बहुत से आधुनिक रोग, मस्कुलर पेन, बैक पेन, सरवाइकल पेन जैसी समस्या का समाधान योग, थिरैपी और मेडिटेशन से संभव है। इसमें खासतौर से खान-पान और लाइफस्टाइल को बदल कर ठीक किया जा सकता है। बीएचयू आईएमएस के डॉ. शुभम श्रीवास्तव ने आदमी की दिनचर्या, बैठने के पोस्चर, सूर्य की किरणों से लाभ को भारतीय परंपरा से जोड़ते हुए विस्तृत ढंग से प्रकाश डाला। कहा कि हमारे यहां प्रार्थना, सूर्य नमस्कार, योग शुरू से ही भारतीय परंपरा में था।
प्रबंध अध्ययन संकाय के प्रो. अविनाश पाथर्डीकर ने धर्म के मापनी विकास शोध पत्र को विस्तार से समझाया। कहा कि धर्मानुकूल आचरण करने वाला ही जीवन में सफल होता है।
अतिथियों का स्वागत संगोष्ठी के समन्वयक प्रो. गिरिधर मिश्र एवं विषय प्रवर्तन प्रो मानस पांडे ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ धीरेन्द्र कुमार चौधरी ने किया।
इस अवसर पर प्रो. अजय प्रताप सिंह, प्रो देवराज, प्रो प्रमोद यादव, प्रो मनोज मिश्र, प्रो सौरभ पाल, प्रो रजनीश भास्कर, प्रो. प्रदीप कुमार, डॉ. रसिकेश, डॉ. आशुतोष सिंह, डॉ. मनीष गुप्ता, डॉ. शचींद्र मिश्र, डॉ जाह्नवी श्रीवास्तव, डॉ. वनिता सिंह, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ. अनुराग मिश्र, डॉ. संजीव गंगवार, डॉ. नीतेश जायसवाल, आदि सभी विभाग के संकायाध्यक्ष और विभागाध्यक्ष उपस्थित थे।