मिलिए शशि तिवारी से जिन्होंने भारत से लेकर चीन तक लगाए पेड़
जुनून किसी को भी ऐसी शक्ति और मिशन दे देता है कि वह बड़े से बड़ा काम कर देता है।
संकल्प सवेरा, जौनपुर। ऐसे ही जुनूनी युवा शशि तिवारी हैं। जौनपुर के सुजानगंज के भिखारीपुर गांव के रहने वाले शशि जेएनयू से चीनी भाषा में परास्नातक हैं। पढ़ाई के बाद वे आशु अनुवादक के रूप में कार्यरत रहे। इस दौरान उनका संपर्क चीनी समाज, संस्कृति और भाषा से प्रगाढ़ होता गया। कैरियर में कामयाबी के उपरान्त उन्हें समाज के प्रति अपने कर्तव्यों की याद आयी।
सुंदरलाल बहुगुणा और स्वीडन की विश्वविख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेता थुम्बर्ग से प्रेरित होकर पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। ग्रेता थुंबार्ग से उनकी मेल द्वारा बात होती रहती है
पिता स्वर्गीय पंडित बाँकेलाल तिवारी सामाजिक कार्यकर्ता और कांग्रेस के नेता था। पर आजीवन किसान ही बने रहे। पिता से सामाजिक सरोकार शशि तिवारी को विरासत में मिला।
सर्वप्रथम उन्होंने वृक्षारोपण और वनीकरण पर अपना ध्यान दिया। अपनी कमाई के बचत के पैसे से इन्होंने जौनपुर में हजारों पेड़ लगाए। एक बार अपनी पत्नी से मज़ाक में बोला कि मेरे दोस्त लोग जितना पैसा अपने शाम के ” रस रंजन ” में खर्च कर देते हैं बस उतने ही ही पैसे से मैं पेड़ लगवाने का शौक पूरा कर लेता हूँ।उनके लगाए पेड़ अब फलदार हो चुके हैं। वे अब भी किसी से मिलते हैं या शादी प्रयोजन में जाते हैं तो अपनी गाड़ी में पेड़ लादकर ले जाते हैं। ये पेड़ वे वहाँ आये लोगों को भेंट करते हैं।
चीन की यात्राओं में उन्होंने कुछ संस्थाओं को वित्तीय दान देकर पेड़ लगवाए।
हरियाली देखना उनका शौक है।
इसलिए वे न केवल पेड़ लगाते हैं बल्कि पेड़ों की रक्षा के लिए आंदोलन भी करते हैं। मुम्बई के आरे जंगलों में पेड़ काटने के विरुद्ध सत्याग्रह में उन्होंने भाग लिया। हंसदेव के जंगलों के कटने के विरोध में भी समर्थन दे रहे हैं।
वे देश दुनिया के पर्यावरण विदों और कार्यकर्ताओं से सतत संपर्क में रहकर अपनी सूचना और ज्ञान को समृद्ध करते रहते हैं।
जे एन यू के मित्रों की सलाह पर अंकुरण नाम से एक ट्रस्ट गठित किया है। भविष्य में उनकी योजना इस ट्रस्ट के माध्यम से वृक्षारोपण और वनसंरक्षण के कार्य को और बड़े पैमाने पर करने की है।