पट्टीदारी….
अगली-बगली घर-दुआर अउर..!
बनल होय दलान-ओसारी…पर…
मन में दूरी कोस भरे कै होय,
बस इहै कहि जात है…पट्टीदारी…
अईन बख़त पै खानपान के,
पाबंदी कै फरमान होय जब जारी
समझ लो भैया पक्की है पट्टीदारी
बात-बात पर भिड़-भिड़ जाए,
युद्ध के होय सदा तैयारी…
बरबादी का हर नुस्खा गढ़ती,
गाँव-देश में यह पट्टीदारी….
बन जाओ तुम यस.पी,डी.एम.
चाहे बन जाओ दण्ड-अधिकारी,
गाँव देश में तुम पर भारी रहेगी,
सदा तुम्हारी पट्टीदारी…
खूब खरीदो जगह-जमीन…तुम…
बना लो संपत कितनो सारी..पर,
गाँव-देश में कभी न होगी,
किलियर खेती-मेड़ तुम्हारी…
कारण इसका बस एक है मित्रों
गाँव-देश की…तुम्हरी पट्टीदारी…
खूब करो तुम मेलजोल..या फिर..
कर लो मन भर खातिरदारी..पर..
गाँव-देश में ऐंठी रहेगी ये पट्टीदारी
हर बीमारी एक तरफ है,
एक तरफ है पट्टीदारी…
कबहुँ न ई सब रहम दिखावे,
घाव करे हरदम भारी…
कदम-कदम पर रगरा ढूँढ़ें,
एक दूजे को देवैं…हरदम गारी,
ऐसी ही होवे पट्टीदारी….
गाँव भरे मा दुइनव घूमे-टहरै,
बनके भले बिलारी…पर…
झूठी शान अउ अकड़ के खातिर,
दुइनौ मन से निबहैं पट्टीदारी…
जिसकी मति है मारी गई,
उसने करी इनकी चाटुकारी…
मिलना-जुलना कछु भी नहीँ है,
सब पर आँख तरेरे पट्टीदारी…
पट्टीदारी गज़ब का पागलपन है,
औ..है…ग़ज़बै दुनियादारी…
व्यथा अनोखी अउर ह न्यारी,
गाँव देश की यह पट्टीदारी…
रिश्तेदारी भले न निबहै…!
खूब..मनोयोग से निभती पट्टीदारी
कैसे कहूँ मैं भईया….?
एक दूजे के नाश करे है,
गाँव-देश में ई पट्टीदारी…
भइया,बात सही एक कहैं जितेंदर
गाँव-देश में हौ उहै सिकंदर
जेकरे घरे के सुख-दुख में,
होय सबकै भागीदारी…
कोई न ऐसा मिले गाँव-देश मा
जो मन से निभाए पट्टीदारी…पर..
एक बात अउर है भइया…!
जैसे जरूरी होत अहै,
दुश्मन से आपन दमखम
होय हमेशा भारी….
वइसै भले न होय दीवार कोई,
न होय कोई चहारदीवारी…पर…
एक बात सही हौ भइया…!
विकास बरे…जरूरी बाहै…
धाकड़ होय परस्पर पट्टीदारी….!
विकास बरे…जरूरी बाहै…
धाकड़ होय परस्पर पट्टीदारी….!
रचनाकार…
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद…कासगंज