सब मना करते हैं
घर बाहर सब टोकते हैं
इष्ट मित्र सब रोकते हैं
सब मना करते हैं
क्यों लिखते हो ?
तुम्हारे लिखने से क्या होगा ?
तुम्हारी लेखनी व्यवस्था तो नहीं बदल सकती !
जब कुछ बदलने वाला नहीं
फिर विरोध क्यों मोल लेते हो?
फालतू का सिरदर्द!
जब कूप में भाँग पड़ी है तो
तुम्हारे लिखने से क्या होगा ?
देखते नहीं एक आवाज़ पर
कैसे लोग नाचने लगते हैं !
लोकतंत्र में गजब की लोकप्रियता !
मान जाओ बंद कर दो लिखना।
सुकून से रहो
सब तुम्हारी इज्जत करेंगे।
समाज जो पसंद करे
वही करना चाहिए।
समाज से अलग जाने पर
दुख ही दुख मिलेगा।
अब तक जो किया सो किया
आगे से बिल्कुल बंद कर दो।
मत लिखो किसी दुर्व्यवस्था पर
जो हो रहा है उसे होने दो
तुम्हारे लिखने से कुछ न बदलेगा।
सही कहा आपने कुछ न बदलेगा
पर मेरे जिंदा होने का अहसास बदल जायेगा
मेरा ज़मीर मर जाएगा।।
– डॉक्टर रामजी तिवारी
अध्यापक
सेंटजॉन्स स्कूल,सिद्दीकपुर,जौनपुर।