कवि को समय की पहचान होनी चाहिए:सुभाष राय
संकल्प सवेरा। कवि को समय की पहचान होनी चाहिए। जिसे समय की पहचान नहीं होती, उसके पास कविता कभी आ नहीं सकती। घड़ी का समय से बहुत ज्यादा रिश्ता नहीं होता। स्वप्निल श्रीवास्तव को यह अच्छी तरह पता है। दुनिया की सारी घड़ियाँ रुक जायें तो भी समय नहीं रुकता, घड़ियों के तेज या सुस्त हो जाने का भी समय की गति पर कोई असर नहीं पड़ता।
बादशाह का अपना समय होता है, उसका समय उसके इरादे, उसकी ताकत से निर्धारित होता है। जनता का चेहरा उसके समय के आईने में अक्सर नहीं झलकता है। तानाशाह जैसे चाहे अपनी क्रूरता के समय का रथ मोड़ सकता है। उसकी मनमानियां, उसकी जिदें, उसकी हिंसा, उसके दमन के तौर तरीके उसके समय के बारे में बताते हैं।
गरीबों का कोई समय नहीं होता, उनके पास समय होता ही नहीं। उनका जीना मरने की ही तरह होता है। वह जन्म लेने के क्षण से ही मरना शुरू कर देते हैं। स्वप्निल श्रीवास्तव गहरे और विस्तृत जीवनानुभव के कवि हैं। वे साधारण अनुभवों के तल में धंसी असाधारणता को आसानी से देख लेते हैं और उसे इतने सरल तरीके से कहते हैं कि सुनने वाला विस्मित हो जाता है। उनकी कविताओं में सादगी है, सरलता है, साफगोई है।
उनके कहन में विविधता है, दृष्टिसंपन्नता भी है। वे पूरे कवि हैं, पार्टटाइम कवि नहीं। वे कविता के साथ बने रहने के लिए बहुत घूमते हैं, बहुत पढ़ते हैं। उनके साथ कुछ देर रहने पर पता चलता है कि वे बैठे-बैठे कितनी यात्राएं कर लेते हैं। किसी भी कवि को कवि बने रहने के लिए यह एक आवश्यक सबक है और वे इस रास्ते से तनिक विचलित नहीं होते।
कल कुछ घंटे हम साथ थे। वे लखनऊ आये हुए थे। कुछ निजी काम से। मैं समझता हूँ कि उनका कोई निजी समय नहीं होता, उस समय को छोड़कर, जब उनके पास कोई कविता आती है। वे मिलते हैं तो इस तरह जैसे युगों बाद मिले हों और दिल से लगा लेना चाहते हों। मुझसे वे जब भी मिलते हैं, कुछ मुझे अपने साथ ले जाते हैं और कुछ खुद को मेरे पास छोड़ जाते हैं। उनके साथ उनके जिगरी दोस्त वीरेंद्र जी भी थे। वीरेंद्र जी से अभी मेरी यह दूसरी मुलाक़ात थी लेकिन वे ऐसे निराले शख्स हैं कि बस सुनते रहिये। स्वप्निल के साथ हम नरेश जी के घर गए।
वहां बैठे। नरेश जी के पास बैठना नहीं होता, उनके पास होना,कविता की कार्यशाला में होना होता है। कुछ न कुछ तो मिलता ही है। स्वप्निल ने मुझे और नरेश जी को अपना नया काव्य-संग्रह दिया। सेतु प्रकाशन से आया है। ‘घड़ी में समय।’ कुछ चर्चा और चाय-पान के बाद नरेश जी ने उनसे कवितायें सुनाने का आग्रह किया। स्वप्निल जाने को उठ खड़े हुए थे लेकिन नरेश सक्सेना जैसा कोई श्रोता कुछ सुनना चाहे तो कोई कवि कैसे ऐसा अवसर गँवा सकता है। स्वप्निल उठते-उठते बैठ गए और दो कवितायें सुनाईं। इस संग्रह में उनकी 56 कवितायें हैं।
इसके ब्लर्ब में जाने-माने कवि मदन कश्यप ने लिखा है, ‘इस नए संग्रह के आलोक में उनकी लम्बी काव्य-यात्रा का अवलोकन करें तो स्पष्ट दिखता है कि स्वप्निल बदलते हुए समय की चुनौतियों से निरंतर टकराते हुए कविता की अपनी जमीन पर खड़े हैं।’ प्रिय सखा स्वप्निल श्रीवास्तव को नए संग्रह के लिए बहुत बधाई।
सुभाष राय