मैं निरपराध बाकी सब अपराधी:महेंद्र पाल
संकल्प सवेरा, मुंबई इस वाक्य के सब्दो को थोड़ा बगल रखकर सिर्फ भाव को जाने, उसे समझे
मानव जाति के सभी इसमे परेशान है,क्योकि हर कोई अपने को निरपराध ही समझते है,सभी को औरों के दोष नजर आते है,अगर नही नजर आते तो लोग औरों में दोष खोजने में अपनी पूरी ताकत का इस्तमाल करते है।
यह मानव स्वभाव है,कोई अपने दोषों को देखकर उसमे सुधार लाने की बजाय दुसरो में दोष निकालकर खुश होते है, लेकिन ये लोग यह नही समझते कि ऐसा कर वे अपना ही नुकसान कर रहे है,ये अपने ही प्रगति का मार्ग अवरुद्ध कर रहे है।
इससे ये जिसमे दोष खोज रहे है,उसे कोई फर्क नहीं पड़ता परन्तु इनका नुकसान अवसय होता है,जिसमे ये दोष निकालते है,उसके सुख में कोई अंतर नही होता है,पर ये अवसय दुःखी रहते है, ये अपने अवगुणों को बदलने की बजाय अपना सामर्थ दोष खोजने में लगाते है,और जब स्वतः के दोष को दूर करने की सद्बुद्धि इनमें पनपती है तो इनके पास सामर्थ बचता ही नही।
इसके लिए एक उदाहरण देते है, आजकल करीब करीब हर घर मे चाहे सहर हो या गांव बिजली होती ही है, कभी कभी अचानक बिजली चली जाती है,तो हर व्यक्ति अपने घर मे जो संसाधन जैसे कि घर मे रखी मोमबत्ती, लालटेन,टोर्च,इत्यादि का इस्तमस्ल कर उजाला करने की बजाय पहले घर से बाहर निकलकर अगल बगल वाले घर मे झांकना सुरु कर देता है,
और यह देखना चाहता है कि क्या बिजली सभी की गई है,या सिर्फ मेरे घर की,अगर सभी के घर की गई है तो ठीक ,तब ये आनन्दित होते है कि सभी अंधेरे में है,तब तक बगल वाले घर मे रोशनी आ जाती है,और ये दुःखी रह जाते है।
महेंद्र पाल
राष्ट्रीय संयोजक शेफर्ड फैमिली ट्रस्ट
पूर्व अध्यक्ष धनगर गड़ेरिया समन्वय समिति मुंबई
8291000903