राजनीति में मुखौटों का चलन बढ़ा:वशिष्ठ नारायण
देश के युवा को खुद बनाना होगा रास्ता
संकल्प सवेरा,जौनपुर। एक पुरानी कहावत वर्तमान राजनीतिज्ञों पर पूरी तरह फिट बैठती है, वी ये कि आइना लेकर निकला तो कोई नज़र नहीं आया और मुखौटा लाया तो भीड़ लग गई।
दरअसल सत्ता हो या विपक्ष, सभी जब घर से निकलते हैं तो खुद को वहीं छोड़ मुखौटा लगाकर झूठ को सच का अमलीजामा पहनकर आमजन को भ्रमित करते हैं। किसी को देश और यहां के आमजन के दुख दर्द से कोई मतलब नहीं। यह बात समाजवादी चिंतक वशिष्ठ नारायण सिंह ने कही।
पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के करीबी रहे वशिष्ठ नारायण सिंह हमेशा सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक मंचों बेलाग बोलते रहे। छात्र जीवन से ही इन्होंने चन्द्रशेखर को आदर्श मानते रहे।
यही कारण है कि चन्द्रशेखर ने एक पत्र में अपने आखिरी दिनों में जिक्र किये की मैं चुप रहा और वशिष्ठ वही बोलते दिख रहे जो मेरी चाहत रही। यानी वही बोलना चाहता था लेकिन स्वास्थ्य से बंदिश लगा रखी थी।
श्री सिंह ने एक कार्यक्रम के दौरान कहाकि आज़ ही नहीं, वर्ण दशकों से स्वस्थ राजनीति का क्षरण होता जा रहा है। राजनीतिज्ञों का भाषण बनावटी है। वोट के लिए हर दल आमजन और खासकर युवाओं का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं।
रोजगार और महंगाई तो बहाना हैं। यही कारण है कि विश्व मे सबसे अधिक युवाओं वाला हमारा देश बूढा नज़र आने लगा है। युवा पीढ़ी दलों का झंडा-डंडा लेकर जातिगत आधार पर नारे लगाकर अपनी ऊर्जा खपा रही है।
उन्होंने कहा कि आज जरूरत है कि युवा खुद आगे आकर अपना और देश का भविष्य सवांरे, अन्यथा देश के साथ युवा भी असमय बूढा हो जाएगा।