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🌾 निराशा जीवन ऊर्जा को सोख लेती है 🌾
प्रदीप मौर्या
संकल्प सवेरा। निराशा आत्मा का विषवेल है।विषवेल वह लता होती है जो किसी भी वृक्ष को चारो ओर से लपेट लेती है ।अपने तंतुअों को वृक्ष के तना में धंसा कर अपने जीवन हेतु सारी ऊर्जा इसी वृक्ष से लेता रहता है ,परिणामस्वरूप वॄक्ष धीरे धीरे सूख जाता है।
इसी प्रकार निराशा भी विषवेल की भांति जब हमारी आत्मा को घेर लेती है तो वह हमें धीरे धीरे ऊर्जाविहीन करने लगती है। चारों ओर कहीं भी हम आशा की किरण देखने में अक्षम होते जाते हैं।
निराशा को सीधे जीवन नहीं हटाया जा सकता है ,क्योंकि निराशा तो पारिणाम है किसी बात का इसके कारण को हटाया जा सकता है।जब तक कारण नही हटता परिणाम बना रहता है। जब सारा श्रम हम परिणाम हटाने में करते है ,तो असफल होने पर निराशा और गहन हो जाती है।
निराशा के कारण समझने के लिए हमे कुछ ओार समझना होगा ।
हम सभी के पास एक क्षमता हाती है इस क्षमता से सम्बन्धित एक संरचना या डिवाइस होती है ।इसी डिवाइस से हमारे पास कोई विशेष क्षमता कार्य करती है। जैसे नाक है वह गन्ध ग्रहण करने की क्षमता है।
जीभ है वह स्वाद ग्रहण करने की क्षमता है।कान है वह ध्वनि ग्रहण की क्षमता है।आंख है वह केवल बाह्य वस्तुओं को देखने की क्षमता है। इसी प्रकार हमारे भीतर दर्शन की एक क्षमता है,जो हमारे भीतर भाव को ग्रहण करने की क्षमता है।
अब जैसे हम अन्धेरी रात में रास्ते पर जा रहे हैं रास्ते के बगल ही कुछ दूर पर बांस या पेड का टूटा हुआ हिस्सा खडा है स्पष्ट नही हो रहा है क्या है ।अब हमारे भीतर देखने वाली क्षमता कल्पना या अनुमान के आधार पर कुछ भी देख सकता है ।कोई भूत हो सकता है ,कोई |छिपा हुआ है शत्रु हो सकता है, ऐसा कोई भी खतरा देख सकता है
दिखाई पडते ही भय का भाव उठ जाता है। तो यह जो हमारी देखने की क्षमता है ,इस क्षमता से जो हमें दिखाई पडा उसका परिणाम हुआ भय का भाव और जिसका प्रभाव हमारे आत्मिक ऊर्जा के संकुचन के रूप में आया।
जिस प्रकार हम आंख से बाहरी वस्तुओं को देखते है।उसी प्रकार हमारे भीतर भी एक दर्शन की क्षमता है।जो मन के विचारो ,कल्पनाओं ,अनुमानों और दृष्टिकोणों के आधार पर देखती है।जिसके परिणामस्वरूप भाव का उठना होता है।इसी क्षमता से हम स्वप्न भी देखते हैं।
निराशा भी दर्शन का परिणाम है। हमें कुछ दिखाई पड रहा है भीतर ।हमारा दृ।ष्टेकोण नकारात्मकता से पूरी तरह जुड गया है।जिसके परिणामस्वरूप लगातार निराशा का भाव बना हुआ है।
हमें इस बात को समझना होगा ,इस तथ्य को देखना होगा कि हमारी देखने की क्षमता अटक गई है किसी विशेष दिशा में ।इस तथ्य को जान लेते ही हमारी दर्शन की क्षमता मुक्त हो जाती है ,।और हम निराशा के बाहर होते हैं।
ओशो की प्रेरणा 🌺🌷🌷🌺