नई दिल्ली. कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में हर तरफ तबाही मचा रखी है. हर रोज़ लाखों की संख्या में लोग इस वायरस से संक्रमित हो रहे हैं और हज़ारों की संख्या में लोगों की जान जा रही है. राहत की खबर ये है कि मौजूदा लहर फिलहाल थमती दिख रही है, लेकिन चिंता अभी खत्म नहीं हुई है. एक्सपर्ट्स की मानें तो भारत में तीसरी लहर भी दस्तक दे सकती है और इसके सबसे ज्यादा शिकार छोटे बच्चे हो सकते हैं. भारत में अभी तक बच्चों के लिए वैक्सीन लगवाने की अनुमति नहीं दी गई है. ऐसे में अभिभावकों को बच्चों का खास ख्याल रखने की जरूरत है.
दुनियाभर के एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोरोना से बच्चों की सेहत को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है. ज्यादातर बच्चों में कोरोना के लक्षण नहीं नजर आते हैं. ऐसे में किस तरह के लक्षण सामने आने पर क्या किया जाना चाहिए, इसको लेकर सरकार ने गाइडलाइन जारी की है. गाइडलाइन में कोरोना से पीड़ित बच्चों को चार कैटेगरी में बांटा गया है.
ऐसे बच्चे जिनमें कोरोना का कोई लक्षण न हों.
हल्के लक्षण वाले बच्चे. ऐसे बच्चों को हल्का बुखार, खांसी, सांस लेने में परेशानी, थकान, बदन दर्द, नाक बहना और गले में खराश की शिकायत रहती है.>> मॉडरेट या मध्यम लक्षण वाले बच्चे.
गंभीर लक्षण वाले बच्चे
इन लक्षणों से रहे सावधान
स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि बुखार, कफ, सांस में कमी, थकावट, जोड़ों में दर्द, गले में दर्द, नाक से ज्यादा बलग़म निकलना, स्वाद और गंध का जाना – कुछ लक्षण हैं जो बच्चों में पाए जाते हैं. वहीं कुछ बच्चों में पाचनतंत्र की समस्या भी पाई जाती है. वहीं एक नया लक्षण भी देखा जा रहा है जिसमें शरीर के अलग-अलग अंगों में जलन की शिकायत पाई जाती है. ऐसे में लगातार बुखार बना रहता है.
जिन बच्चों में कोरोना के लक्ष्ण न दिखें उन्हें घर पर रखा जा सकता है. अगर परिवार के सदस्य कोविड पॉज़िटिव हैं तो स्क्रीनिंग के जरिए इन बच्चों की पहचान की जा सकती है. आगे के लक्षणों और इलाज के लिए इन पर लगातार निगरानी जरूरत पड़ती है.
वहीं बुखार, सांस की परेशानी, खराब गले से जूझ रहे बच्चों को जांच की जरूरत नहीं है और ऐसे बच्चों को घर में ही अलग कमरे में रखकर इलाज दिया जा सकता है. मंत्रालय ने कहा है कि अगर बच्चे दिल या फेफड़ों से जुड़ी किसी गंभीर बीमारी से पहले से ही जूझ रहे हैं तब भी बेहतर होगा कि घर पर ही उनका इलाज किया जाए.
>>मध्यम कोरोना लक्षण वाले बच्चे की देखभाल नजदीकी हॉस्पिटल में कराएं. बच्चों को लिक्विड डायट देना चाहिए. छोटे बच्चों के लिए मां का दूध सबसे अच्छा होता है.
बुखार के लिए पैरासिटामॉल देते रहें.
लंबे समय तक तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी, दस्त डीहाइड्रेशन, पेट में तेज दर्द ,आंखों का लाल होना, शरीर पर दाने जैसे लक्षणों के अलावा बच्चों के बर्ताव में बदलाव तक को खतरे का संकेत मानन चाहिए और तुरंत डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए.