वर्तमान को माफ नही करेगा भविष्य का इतिहास: वशिष्ठ नारायण सिह
देश की नवजवानी अभी सो रही है, सुबह अवश्य होगी नवजवानो की अंगडाई रंग अवश्य लायेगी
संकल्प सवेरा, जौनपुर। इससे बडी बिडम्बना और क्या हो सकती है कि जिसके कन्धो पर भारतीयो के जान माल की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी वे ही दगाबाजी करते हुए हमे मौत के मुहाने पर पहूंचा दिया और हम बेवस और लाचार होकर अपने के सामने तडपते हुए मरते रहे। इस लाचारी और बेबसी का फायदा उठाने वाले इन्सानियत के दुश्मन लम्पट धूर्त और बेइमान तथाकथित नेतागण, नौकरशाह, व्यापारी और पुरोहितगण आपसी सांठ- गांठ करके तडपती हुई जनता को अपने ब्रहम्जाल में फसा कर लूटते रहे। युद्ध और महामारी इन राष्टद्रोहियो के लिए एक सुनहरा अवसर प्रदान करती है, इन धूर्त और मक्कारीे के कारण आज हमारा देश चऱित्र के मामले में पुरी दुनिया के सामने नंगा हो गया है?
जिस तरह से कोरोना वायरस कम और प्राण रक्षक दवाओ संसाधनो के अभाव में बच्चे महिलाए जवान और बूढे अपने- अपने कन्धो से लेकर सडको अस्पतालो के प्रांगण मे तडपते हुए मरते रहो और मरने वालो के सगे सम्बन्धी गुहार लगाते रहे और मरन वालो की लाशे साइकिलो, ढेलो और कन्धो से अस्पताल तक पहुंच कर छःफिट की जगह न पाकर अपनी- अपनी नसीब को कोसते रहे।
इसी दौरान धन को ही अपना मां बाप समझने वाले समाजद्रोही और राष्टद्रोही टुकडखारे दौलतमंदो ने प्राण रक्षक संसाधनो की कालाबाजारी और चोर बाजारी कर के सीधी सादी जनता को लूटने का काम किया सबसे बडा दुखद आश्चर्य यह रहा है कि देश की प्रान्तीय सरकारे और केन्द्रिय सरकार गांधी के तीन बन्दर बनकर अपने आख, कान और जुबान को अपने हाथो से जानबूझकर बन्द कर लिय संविधान की कसमे खाने वाले तथाकथित नौकरशाह और नेतागण भी अपने संबैधनिक दायित्वो से मुह मोड लिये, इन नेताओ और नौकरशाहो के मुह से संवेदना के दो शब्द भी नही निकले और इनकी आत्मा इतनी मर चुकी है कि इनके आखो से दो बूंद आशू भी नही टपके, संविधान की कसमे खाते है और भाषा धर्म सम्प्रदाय और जाति की ही बालते है। आज जब अपने ही जाति धर्म सम्प्रदाय और देश को इनकी जरूरत पडी तो वे मुहमोड लिये और अपने को ही अपने ही हाल पर जीने मरने के लिए छोड दिये है।
आज मरने वालो की आत्मा हम सभी से चिल्लाह, चिल्लहा कर पूछ रही है कि बताओ हमारा भारत देश कहा छिप गया है जिसके लिये हमारे पूर्वजो से लेकर स्वयं तक कुर्बानी देते रहे है मृत आत्माये पूछ रही है कि हमारे ही भाई, बहन, मां बाप खेतो खलिहानेा फैक्टी मील कारखानो मे जीतोड मेहनत करके भारत को बनाने का काम किया और सीमाओ पर कुर्बान होते रहे तो ऐसी स्थिति में हमारा देश हमे क्यो नही बचाया।
वर्तमान भारत मृत आत्माओ की चित्कार और ललकार भले अनुसुना कर दे लेकिन भविष्य इसका जवाब मांगेगा चूकि अभी पुरा देश गम मे डूबा हुआ है अंधेरा आधी रात बीत चुकी है देश की नवजवानी अभी सो रही है, सुबह अवश्य होगी नवजवानो की अंगडाई रंग अवश्य लायेगी, इतना निश्चित है कि भविष्य का इतिहास वर्तमान को माफ नही करेगा।
।।लेखक।।
वशिष्ठ नारायण सिंह
समाजवादी चिंतक
मो0 8601190603