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दोस्ती
भला दोस्ती भी पत्तों कि तरह होती है?
जो सूख जाएं तो पेड़ों का साथ छोड़ दे
और झड़-झड़ कर खड़-खड़ की आवाज करें
जो अपना अस्थाई अस्तित्व बताएं
भला दोस्ती किसी गुब्बारे में भरी हवा के समान होती है?
जिसमे कोई हल्के से कोई सुई चुभो दे तो भटाक से फूट पड़े
और हवा को अलग कर दे
जो अपने हल्केपन का एहसास कराए
कौन कहता है?
दोस्ती सूखे पत्तों की तरह
और फूटे गुब्बारे की तरह होती है
आखिर रास्ते बदल जाते हैं
मंजिल वही रहती है
वक़्त निकल जाता है
लम्हे छूट जाते हैं
दोस्त छूट सकते हैं
दोस्ती रह जाती है ।
सुमित राजौरा
अछेजा घाट
बुलंदशहर उत्तर प्रदेश भारत












