राजस्थान: दो गज दूरी की बात हुई थी पर वह दूरी भौतिक दूरी की बात थी, शारीरिक दूरी की बात थी, मानसिक दूरी के लिए किसने कहा था मेरे भारतवर्ष के महामहिमों… आखिर अंतस की दूरी क्यों बना कर दुबके जा रहे हो। आज मन में नमी सी सुलग रही है, आज आंखों से धुंआ सा भी टपक रहा है, सबके चेहरे की लाचारी भी देख लो हर व्यक्ति कोने में दुबक सा रहा है। आज व्यक्ति विशेष प्रकार के अवसाद को ओढ़े कभी कहीं और कभी कहीं वाट्सप फोन से अपने लोगों को संपर्क करने की कोशिश कर रहा है पर हर व्यक्ति अपने स्तर के व्यक्ति की या ऊंचे दर्जे के व्यक्ति की कुशलक्षेम पुछ कर परिपाटी निभा रहा है और कोई भी व्यक्ति अपने से निम्न व्यक्ति के हालचाल पुछने की पहल नहीं कर पा रहा है और हर कड़ी का यही पैमाना है कि स्तर देख कर सवाल जवाब दिए जा रहे हैं। जाने क्यों इंसान इस भयावह परिस्थितियों में भी इंसानियत को उपेक्षित कर रहा हैं या चेहरों को देख कर रश्म अदायगी कर रहा है । जाने क्यूँ इंसान भूल जाता है कि व्यक्ति छोटे बड़े नहीं होते, हर एक का अपना अस्तित्व होता है। तलवार की जगह तलवार और सूई की जगह सूई काम आती है। सामाजिक सरोकार क्यो नही निभा पा रहे हैं। आज रोटी बांटने वाले बहुत है पर मानसिक संताप बांटने का समय किसी के पास नहीं। जरूरतमंद केवल अर्थ के ही जरूरतमंद नहीं है वे जरूरतमंद है लोगों से अपनी समस्याओं को सांझा करने के लिए, वे जरूरतमंद है इस अनचाहे अवसाद से बाहर निकलने के लिए, वे भविष्य के प्रति आतंकित भी हो सकते है…. आज ढूंढ रहे हैं अपने अगल-बगल मे कि कोई तो हो द्रोणाचार्य कि एकलव्य को सही राह दिखादे। केवल भूख का निवारण ही समस्या नहीं है। कोरोना बीते जमाने की बात हो जाएगी पर कुछ दंश ऐसे भी दे जाएगी कि जिससे लोगों को उबरने मे वक्त लगे। उदाहरणार्थ किसी व्यक्ति के आटे की कमी तो नहीं पर अचानक से घर मे किसी व्यक्ति विशेष के शुगर ही डाउन हो गई तो आपका निजी डाक्टर जो हमेशा आपके लिए खड़े होने का दंभ भरता था वो फोन उठाने से इंकार कर दे तो आप उसकी मानसिक शारीरिक भरपायी नहीं कर पाएंगे पर ऐसे विपरीत हालात में कोई निस्वार्थ भाव में आपके लिए आ जाए आप उसे भगवान से कम नहीं पाएंगे और अगर आप ऐसी परिस्थितियों से किसी को निकालने की कोशिश कर पाते हैं, बेशक आप भामाशाह की गिनती में न आए पर किसी की जिंदगी बचाने का श्रेय तो ले पाएंगे। एक दुसरे परिदृश्य पर भी विचारे कि आपका कोई वयोवृद्ध रिश्तेदार कही किसी क्षेत्र में फंस जाए पर आप ये सोच रहे हैं कि कौन मुसीबत में पड़े तो क्या मानवीय मूल्यों का क्षरण नहीं है और यदि आप सब प्रकिया से परिचित हैं और आप उसे सही राह दिखा दे तो बेशक आप भामाशाहो मे नही गिने जाओ पर आप मानवीय मूल्यों की नीवं तो बन सकते हैं। एक तीसरा परिदृश्य भी कई बार कई रूप में सामने आ जाता है कि … आपका बच्चा अचानक से बीमार हो जाए और न समझ में आए कि वह ऐसे हालात में क्या करे या क्या न करें तो आप उसे यथास्थिति पर भी छोड़ सकते हैं या एक छोटा सा मार्गदर्शन देकर आप किसी की जिंदगी बचाने का पुण्य भी ले सकते हैं। बेशक तब भी आप भामाशाहो के रूप में नहीं जाने जाओ पर एक अच्छे इंसान की मिशाल माने जाओगे। आज न जाने कैसे कैसे हालात है और हम शारीरिक ही नहीं मानसिक दूरी भी बना चुके हैं। आज आप सोशल मीडिया मे सभी बड़े बड़े लोगों के हाल चाल पुछ रहे पर आप अपने पड़ोसियों के, घर के, निकटवर्ती लोगों के हालचाल पुछने का समय नहीं निकाल पा रहे हैं, अगर उनके हालचाल पुछ लेते हैं तो शायद जिंदगी की कोई रवानगी मिले। वसुधैव कुटुंबकम की धरा के वाशिंदों आज एक कोशिश मानवीय मूल्यों के लिए भी करो। आप अपने सभी लोगों की सहायता नही कर पाए पर उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश जरूर करो। निकला हुआ वक्त कातिल होता है आज अगर आप किसी को साथ देते हैं तो यकीन माने कि हर दिन पूर्णिमा होगा और हर माह रमजान। खुशियां बांटने के लिए केवल अर्थ ही काफी नहीं होता… जज्बातों का भी महत्व होता है। यकीन मानो दोस्तों… एक पहल करके देखो तो सही…. पूरी दुनिया की खुशी आपके कदमों मे आ जाएगी। राजकीय प्रशासकीय सम्मान का दावा मै नहीं करती पर ईश्वरीय सम्मान के सच्चे अधिकारी आप होंगे, इसमें कोई दौराय नहीं।
डॉ भावना शर्मा
झुंझुनूं
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