जौनपुर। ऐतिहासिक महापुरुषों ने गहन चिंतन मनन कर के देश में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना किए, संसदीय लोकतंत्र का मूल उद्देश्य देश में एक ऐसी समाजवादी व्यवस्था का निर्माण करना रहा है कि प्रत्येक व्यक्ति सामोहिकता का जीवन जी सकें। और एक दूसरे के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण न करें। हमारा संविधान भी प्रत्येक नागरिक को अपने अपने शारीरिक और बौद्धिक योग्यता के अनुसार देश के शासन और संपदा में बगैर किसी भेदभाव के हिस्सेदारी पाने का पवित्र अधिकार देता है। हमारे संसदीय लोकतंत्र के गर्भ, सामाजिक जीवन को सुखद और समृद्ध साली बनाने का मूल मंत्र भी छिपा हुआ है। दुखद स्थिति यह है कि आज देश के सर्वोच्च पंचायत के पवित्र मंदिर में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ तथाकथित सांसद गढ़ अपने-अपने शारीरिक और बौद्धिक प्रदूषण से पूरे देश के सामाजिक माहौल को प्रदूषित कर रहे हैं। आज संसद में भूखी नंगी प्यासी और काम के लिए रिरियाती जनता के दुख-दर्द पर चर्चा ना होकर बेकार के मुद्दों पर बहसे हो रही है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि तथाकथित सांसद जड़ बुद्धि विवेक से ही नाता तोड़ लिए हैं ऐसे मूढ सांसदों को संसदीय नियम कायदे मर्यादा और शानदार परंपराओं का लेश मात्र ज्ञान नहीं है। इन्हें यही नहीं मालूम इसी तरह से जर्मन में भी हिटलर को सत्ता में आने के पहले जर्मन के संसद में भी यही हुआ करता था। जिसके दुष्परिणाम स्वरूप हिटलर अंध राष्ट्रवाद के घोड़े पर बैठकर जातीय विद्वेष को पैदा करके लोकतंत्र की हत्या कर दिया और जर्मन का तानाशाह बनकर पूरी दुनिया को एक गहरा आघात दिया था आज देश के प्रबुद्ध जन संसदीय कार्यवाही को देखकर लोकतंत्र के भविष्य को लेकर चिंतित हो उठे हैं। पूरी संसद से प्रबुद्ध जनों की तरफ से अपील करता हूं कि व्यक्तिगत जाति सांप्रदायिक और क्षेत्रीय वैमनस्यता और घृणा को छोड़कर राष्ट्रीय जीवन को सुखद और शांतिपूर्ण बनाने के लिए दलीय सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए भारत को पूरी दुनिया का सिरमौर बनाने का कार्य करें। अन्यथा भविष्य का इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।
वशिष्ठ नारायण सिंह, वरिष्ट समाजवादी चिंतक।












