जौनपुर। शनिवार को केन्द्रीय मंत्री द्वारा पेश किये गये बजट के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए वरिष्ठ समाजवादी चिंतक वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहाकि आर्थिक रूप से बीमार भारत की डाइग्नोसीस करने में असफल रही सरकार। प्रत्येक सरकारें राष्ट के अभीकर्ता के रूप में कार्य करती हैं। यह अभीकर्ता राष्ट की सेवा एक टाटर के रूप में करते हैं। वही डाक्टर सफल माना जाता है जो किसी बीमारी को सही डाइग्नोसीस कर ले और सही उपचार कर सके। दुभार्ग्य यह है कि हमारे राष्टय जीवन का आर्थिक पक्ष जो पूरे भारत की रीढ़ है। जब रीढ़ ही बीमार व कमजोर हो जायेगी तो भारत का कमजोर होना सुनिश्चित है। इस बजट में अमीरो को सांत्वना देना, मध्यम को संतोष का पाठ पढ़ाना और गरीबों को सुनहरा भविष्य देने का वादा किया जा रहा है। छूठे वादा करके आम जनता को गुमराह कर देना और सरकार में बने रहना आसान है लेकिन राष्टÑ के विकास में रूके हुए पहिये को खींचकर अग्रसर करने के लिये दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत होती है वह इस बजट में देखने को नहीं मिल रहा है। वादे तो बहुत हैं लेकिन योजना का प्रारूप समझ से परे है। किसानों बेरोजगारों, नौजवानों, मजदूरों के जीवन को सुखद बनाने के लिये कोई सुस्पष्ट योजना दिखाई नहीं पड़ी। सबसे ज्यादा कष्ट की बात यह है कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर इस बजट में बहुत थोड़ा ही अंश दिया गया है जो नाकाफी है जबकि वर्तमान,राष्टÑीय और अन्तर्राष्टÑीय चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिये था। इनकम टैक्स में मामूली राहत देकर आंसू पोछने का काम जरूर हुआ है लेकिन इससे बहुत ज्यादा सरकार को राहत मिलने वाली नहीं है। मेरा अपना सुझाव है कि पांच लाख से लेकर 15 लाख तक 5 प्रतिशत, 15-30 लाख तक 10 प्रतिशत, 30 लाख के ऊपर 20 प्रतिशत का टैक्स होना चाहिये। इससे करदाताओं को प्रोत्साहन मिलता और कर चोरी की सं भवनाएं धूमिल होती। दूसरी सबसे अहम बात यह है कि हमारे देश में काला धन बहुतायात रूप से छिपा हुआ है। इस काले धन को निकालकर राष्टÑीय विकास के कामो में लगाने के लिये उदारतापूर्वक विचार करना चाहिये।