*धमाके के बिना नही होती प्रसाशनिक कार्यवाही
*संकरी गलियों में अवैध कारखानों का जखीरा
राजीव पाठक
जौनपुर। दिल्ली के स्कूल बैग बनाने के कारखाने में हुआ आग का तांडव हो चाहे जौनपुर के जेसीज चौराहा स्थित पटाखा फैक्टरी में विस्फोट,हादसे के बाद पीड़ितों को कुछ सरकारी सहायता व बाकी सब लीपा पोती। हर मामले में देखने को यही मिलता है कि घटना के कुछ दिन बाद फिर सब कुछ वैसा ही चलने लगता है।चंद रुपयों की लालसा में जहां गरीब मजदूर ऐसे अवैध फैक्टरियों में काम करने को मजबूर रहता है तो वही सम्बन्धित विभागों द्वारा रिहायषी इलाके में इस कारखाने के संचालन ने भी अनेक प्रकार सवाल खड़े करता है।
इतिहास पर नजर डाले तो जौनपुर भी ऐसे हादसों को अपनी आंखों से देख चुका हैं। जनपद के संकरी गलियों और मोहल्लों में अनेक प्रकार के अवैध कारखाने बेरोक टोक चलाये जा रहे है। चाहे वे बिस्कुट के कारखाने हो अथवा बीड़ी या चांदी गलाने के नियम विरूद्ध कारखाने,या लकडियो के काम करने वाली आरा मशीन,ईंट के साँचा बनाने वाले कारखाने,अमूमन इनको रोकने में प्रषासन या तो नाकाम रहता है या नाकाम होने का नाटक करता है।
जौनपुर नगर के सबसे पार्श एरिया समझे जाने वाले जेसिज चौराहे के पास अवैध पटाखा फैक्टरी में हुए विस्फोट को शायद ही कोई भूला हो,अनेक बार अवैध पटाखों के कारखानों में आग से विस्फोट हुए और लोगों की मौत भी हुई बावजूद इसके इस प्रकार के कारखानों को खंगालने और उस पर शिकन्जा कसने के लिए कोई रणनीति और व्यवस्था को आज तक कोई अंजाम नहीं दिया जा सका। गलियो का शहर होने के चलते ऐसे इलाको में इस प्रकार की घटना होने पर भयावहता से इन्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि ये कारखाने ऐसी जगहों और गलियो में चल रहे है जहां दमकल की गाड़ियां नही पहुंच सकती।
जिला मुख्यालय पर अनेक मोहल्लों में बिस्कुट और बीड़ी ईंट का साँचा बनाने के तथा आरा मशीन के कई प्रकार के कारखाने बिना लाइसेन्स के और सम्बंधित विभागों की मिलीभगत के धड़ल्ले से चलते आ रहे है। यहां तो गलियों में दर्जनों की संख्या में स्कूल और अस्पताल भी चल रहे है जहां दमकल क्या कोई भी चार पहिया वाहन नहीं पहुंच सकता। इस दुव्र्यवस्था के लिए कौन जिम्मेदार है और किसकी जबाब देही है। प्रषासन के अधिकारी भी कभी इस समस्या पर निर्देष नहीं देते।
जब बड़ी घटनायें होती है तो इसकी चर्चा होने तक बात सीमित रहती है। बताते है कि खाद्य विभाग की लापरवाही के कारण नमकीन, बिस्कुट, चाकलेट, सोनपपड़ी आदि के कई दर्जन कारखाने बिना लाइसेन्स के चल रहे है। कही कहीं ऐसे कारखानों में दर्जनों लोग कार्यरत है। यहां न कभी छापा पड़ता है और न कभी किसी प्रकार के टैक्स आदि के विभाग ही पहुंचते है। बांट विभाग कुंभकर्णी निद्रा है।
यक्ष प्रश्न यह है कि क्या दिल्ली के हादसे के बाद जौनपुर जिला प्रशासन की कुम्भकर्ण निद्रा टूटेगी या इसके लिए प्रशासन को किसी धमाके का इंतजार है।
बॉक्स में….
*अंडरग्राउंड में शोरूम व दुकानों में नही है पर्याप्त व्यवस्था।
जौनपुर की पुरानी नगरीय व्यवस्था को पर तमाम आरोप लगाकर प्रशासन सकरी गलियो,सड़को,इमारतों के कारण होने वाले हादसे से अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर लेता है,जबकि गत कुछ वर्षों से जनपद में भी गगनचुंबी इमारते व अंडरग्राउंड शोरूम बनाने का चलन शुरू हो गया है।एक और जहाँ अधिकांश गगनचुंबी इमारतों के नक्शे नही पास है,तो वही अंडरग्राउंड शोरूम में हादसे से निपटने की पर्याप्त व्यवस्था नही है।ऐसे में किसी भी दुर्घटना की स्थिति में इसकी भयावहता से इनकार नही किया जा सकता।